आहहह !! आखिर किसके भाग्य में नर या नारी !!


#आहहहहह..... की एक दर्दनाक चीख से, विचारों की गहन गुफा में कहीं, ध्यान मग्न "मुझ" की तन्द्रा अकस्मात से भंग हुई हो जैसे!!!

अरे, ये तो सरोज की आवाज़ है! सरोज, मेरी पत्नी!!! लगता है कि लेबर पेन शुरू हो गई! अरे, आस पास कोई डॉक्टर भी तो दिखाई नहीं दे रहा!! आखिर किससे पूछुं की कितनी देर अभी बाकी है!!! थोड़ा परेशान तो था ही, क्योंकि डॉक्टर ने पहले से चेताया था कि मामला कॉम्प्लिकेटेड है, ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है!

आस पास न तो कोई डॉक्टर, न नर्स, न कोई स्टाफ और न ही मेरा कोई अपना! ऐसे समय पर किसी अपने के होने का महत्व अलग ही होता है कुछ!

सामने से माँ को आते देख कुछ तसल्ली सी हुई! कैसी है बहु अब? आते ही पूछा उसने! मैंने बताया कि अभी एक चीख तो सुनाई दी थी पर किससे पूछता कि क्या हुआ क्योंकी आसपास कोई मौजूद नहीं है!

माँ ने कुछ तसल्ली दी कि एक आध चीख तो शुरू में घबराहट में भी निकल ही जाती है, पहली बार है न, तूँ घबरा मत! हो सकता है कि अभी कुछ समय बाकी हो!!

माँ को अपना समय याद आ गया अचानक! बस, लगी अपनी बात बताने!

मेरा भी पहली बार था जब तेरी दीदी आने वाली थी! बहुत घबराई थी मैं भी! डॉक्टर ने ऐसा ही बता रक्खा था कि मामला असुलझा सा है और कुछ भी हो सकता है! तेरे पिताजी से पैसों की तैयारी रखने को बोला था! हम उस समय भी बहुत गरीब ही हुआ करते थे! पैसे नही थे तेरे पिताजी के पास! डॉक्टर को हाँ तो कर दी पर अंदर ही अंदर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि कुछ उल्टा सीधा न हो, बस! अगर ऐसा कुछ भी हुआ, तो आखरी पल में ही डॉक्टर को बताएंगे कि पैसों का इंतज़ाम नहीं हो पाया! फिर चाहे जो हो, देखा जाएगा! ज़िन्दगी अगर पैसों से ही खरीदनी है तो हम ग्राहक नहीं! ये सौदा हमारे बस से बाहर की बात है!

मैं भी घर के हालात जानती ही थी और अपनी भी..!! हिम्मत बांधे मैं भी अपने ईश्वर को अंतिम बार जैसे याद कर अपनी पूरी ताकत लगा दी जैसे, कि ज़िन्दगी या तो एक की दो हो जाएं, या फिर एक भी न रहे शायद! कोई बड़ा सा दाव खेला हो जैसे! हारे हुए जुवारी की तरह, कि आज तो जीत कर ही जाना हो जैसे, वरना जीवन भर का कर्ज कौन चुकाएगा भला! ऐसे में फिर मौत का डर भी निकल जाता है और सम्भावनाएं बड़ जाती है उस विजय की, कि जिस पर अंतिम निर्णय तय किया जाना बाकी हो जीवन के हाथों मृत्यु का या शायद... मृत्यु के हाथों जीवन का!!! खैर, होश आया तो दूसरा जीवन मेरे हाथों में किलकारियां सी मारता, जीवन की चुनौती को पछाड़, विजय शंखनाद सी ध्वनि और मौत की मृत्यु की चितखार का आनंद लेता कोई साज़ सा प्रत्यक्ष में हो जैसे! आंखों में खुशि के आंसुओं का सैलाब, कि जीवन में एक युद्ध से दो जीत हासिल हुई हो जैसे! तेरी दीदी का इस पृथ्वी पर आगमन, उसके ही नहीं बल्कि मेरे भी जीवन की कड़ी परीक्षा बिना सम्भव न था!

हम गरीब लोग यूँ ही जिया करते हैं बेटा..!!! तूँ चिंता मत कर! देख, अभी तक दोबारा कोई आवाज़ नहीं आई है, तो इसका मतलब कुछ समय बाकी है अभी!! वो भी उसी रणभूमि की माटी की उपजी, कड़ी परीक्षा से निकली, कि देवी समान ही वीरता से मृत्यु परीक्षा के लिए तैयार की गई असाधारण मानवी है बेटा, रण जीत कर ही लौटेगी, ऐसी आवाज़ मेरे दिल से आती है! बस तब तक तूँ ईश्वर से प्रार्थना कर कि सब ठीक ठाक ही रहे तो अच्छा!!! वैसे पैसों की व्यवस्था तो है न तेरे पास..!!???

जी....!!!!!!

मेरे इस उत्तर के साथ जैसे दोनों ही ने आंखे नीचे कर ली हों कि एक दूसरे के सामने पूरी हिम्मत जुटा कर अभी अभी जो तसल्लियां और झूठ एक दूसरे के लिए प्रकट किए गए हैं, अचानक से किसी कमज़ोर पल की हकीकत का बोझ लिए टूट ही न जाएं कहीं!!! पैसे नहीं थे मेरे पास भी! और डॉक्टर ने वही पुरानी कहानी, माँ वाली ही मुझ गरीब पर भी थोप रखी थी कहीं!!!

अचानक मैं तेज़ कदमों से बाहर गैलरी की तरफ जाने को हुआ! माँ की भी रोकने की हिम्मत टूट चुकी थी जैसे! समझती थी आखिर वो भी, कि हालत घर के छुपे रहना सम्भव कैसे हो तीन ही सदस्यों के बीच!!

सन्नाटा सा व्याप्त हो गया जैसे...! क्या कमरा, क्या गैलरी और क्या अस्पताल!!! सब सन्नाटा लिए शून्य की यात्रा पर निकल चले हों जैसे!!!

अनन्त में गहरे कहीं अंतर्ध्यान सी होती हर वस्तु...!!!

गैलरी भी कमरे से लगी ही हुई थी! सोचा कि माँ की आंखों में आंख डाल कर तो और झूठ नहीं बोल पाऊंगा शायद, तो यहीं रुकता हूँ! आवाज़ तो यहां भी बराबर आ ही जाएगी! थका थका सा, मायूस और उदास सा एक कोने में बैठ गया और सोचने लगा कि गरीब तो हम थे ही, पर पूरा जीवन मैंने बापू को गरीब जैसी किसी मजबूरी में नही देखा!

एक बार माँ के ही मुँह से सुना था शायद कि पिता जी तो उस दिन ही बहुत से रुपया जुए में हार कर आये थे अस्पताल में, जब माँ की पहली डिलीवरी की तैयारी चल रही थी! डॉक्टर ने रुपया लाने को कहा ही था कि अंत समय ऑपरेशन की बाबत कुछ भी खर्चा आ सकता है, तो सावधान रहें! जैसे ही दीदी आईं थी इस संसार में तो नर्स ने सूचित किया था कि, मुबारक हो, लक्ष्मी आईं हैं!!! और बापू जी के मुहँ से निकला था कि काहे की लक्ष्मी!!! नागिन है नागिन!!! लक्ष्मी होती तो जुए में लगा सारा पैसा दुगना तिगुना कर दी होती, पर इसने क्या किया!!??? पूरे पैसे को डंस गई ये अभागन!!! ये भी नही सोची कि ये पैसा उसकी माँ के ऑपरेशन के लिए घर की आखरी थाली, आखरी बर्तन तक को बेच कर इकट्ठा किया था मैंने! अब तो दारू के भी पैसे खत्म!

अचानक से ध्यान आया कि भूखी तो माँ और दीदी ही रहा करती थीं, हमेशा! पिता जी तो रोज़ दारू पी कर आते और कुछ न कुछ मांस पकाने की वयवस्था भी साथ ही ले कर आते थे सदा!!! तो क्या उस घर की केवल दो स्त्रियाँ ही गरीब थीं केवल, पिताजी नहीं..!!???

गरीब..!!! केवल स्त्री!!! एक आहहहह सी लिए मन में!!! वो आहहहह,,, जो सुनाई पड़े तो उस भगवान के कानों तक के पर्दे फाड़ डाले कहीं, पर खामोश इतनी कि खुद के शोर में गुल, खुद ही सुनने में सक्षम न हो कोई!!! कैसे सम्भव है आखिर!!! कैसी चीख है ये मानवता की!!! कि स्त्री चिल्लाती है और उसी द्वारा जन्मा कोई, उसी का अंश तक सुन पाने में सक्षम न हो कोई!!! कैसे कोई उस चीख को अनसुना कर के कोई आगे बढ़ सकता है भला!!!

क्या स्त्री का जन्म ही इस आहहहहह का भाग्य लिए पूर्ण हो पाता है केवल..!!! क्यों स्त्री ही इस आहहहहह की भागी है हर बार, फिर चाहे वो खुशियों की कुर्बानी की हो, चाहे तन की पीड़ा की, चाहे मन की पीड़ा की, चाहे इच्छाओं के त्याग की, चाहे वासनाओं से बनी शिकार की और भी न जाने क्या क्या... कि शब्द और कारण भी कम पड़ें और बखान भी!!!

चीखों में हुआ स्त्री के जीवन काल का स्वयं का प्रारम्भ भी बिना चीख के सम्भव नहीं! हाँ मोहवश शायद उसे किलकारी का नाम दिया हो इस मानव ने,,,!!!

पर है तो जीवन की युद्धभूमि पर प्रथम ललकार की चेतावनी सी,,, वो #चीख!!!!

कि लो मैं आ गई,
     अब संभलो, कि इकट्ठा करनी है तुम्हें वो सारी ऊर्जा,
     कि दे सको फिर से मुझे अपनी सब परेशानियां इस
     जीवन की,
कि आई हूँ
     इस जीवन में फिर से किसी उद्धार को तुम्हारे,
     कि फिर से हर परेशानी का संघार करने,,,
कि उठो, चलो,,,
     आपकी गलतियों का वारिस जन्म ले चुका है,,,
     कि ऋण मुक्त हो जाओ अपने पॉपों से अभी,,,
     कि जीवन सफल हो किसी का,,,
     कि मुक्ति को तड़पता है कोई जैसे,,,
कि पालनहार हो जैसे,,,
     कि ऋणमुक्ति जीवन की तुम्हारे
     कि ऋण उसी का हो जैसे

कि शक्ति का दूसरा रूप हो कोई जैसे,,, फिर चीखों का मोल ही नहीं रह जाता!! कि स्वांग भर है ये तो उसका, कि कोई पहचान न ले उस साक्षात को जैसे!!! कि ममतामयी की लीला हो जैसे!!! कि चीखों में चीखती सी शक्ति कोई!!! कि ललकार है जैसे, हमारी ही सुरक्षा की गारंटी लिए!!!

तो क्या खेल ही है ये सब,,!!! कोई माया जाल!!! जिसमें स्त्री आती ही है हमारे किसी उत्थान का उद्देश्य लिए इस पृथ्वी पर!!! मोहवश अपनी ही संतानों के प्रेम की ऋणमुक्ति को अवतरित, जैसे कोई दैव्य शक्ति!!! या आडम्बर लिए नर ही कोई खेल रचा डाला है किसी ढाल की भांति, उस स्त्री के प्रयोग को!!!

कुछ भी हो, जब भी चीख सुनाई देती है, अंतःकरण को चीर डालने की ताकत से, जन्मों जन्मों तक की शांति को भंग करती, गहन में भरपूर शक्ति से प्रहार करती सी जान पड़ती है! अगली श्वांस तक को चिंतन की स्तिथि की चुनौती से भरपूर, कोई प्रहार हो जैसे!!! कि कुछ तो बदलाव मांगती हो यह प्रकर्ति जैसे हमसे!!! कहीं दूर से शायद हमारे ही लिए हुए कुछ चीखती सी,,,,, चीख,,,!!!

चीख..!!!

हाँ चीख..!!!

अरे हाँ ये चीख की ही तो आवाज़ हुई थी अभी!! लगता है समय हो चला अब की बार!!! मैं बदहवास सा भाग कमरे की ओर!!! माँ भी जैसे मेरी ही परीक्षा कर रही थी, बोली कि नर्स आई थी बताने को कि डॉक्टर ने आदेश दिया है कि समय ऊपर हो चला है अब, और पांच मिन्ट देखेंगे और फिर ऑपरेशन का ही विकल्प चुनेंगे अंत में!!!

बस पांच ही मिन्ट का अंतिम समय बचा हो जैसे मेरी खुशियों के ग्रहण में अब.!! बहुत प्यार करता था मैं, अपनी सरोज से! प्यार और भी बढ़ जाता है यदि अंत निकट महसूस हो अचानक किसी परिस्तिथि में! दूरियां स्वागत के लिए तैयार खड़ी दिखें तो नजदीकियों की कीमत आसमान छूने भर की हो जाती है जैसे!! अब क्या होगा..!!??? मैं तो इतनी देर में ईश्वर तक से कोई प्रार्थना भी नहीं कर पाया था बदहवासी में! माँ ने कहा भी था!!

उस पाँच मिन्ट में ही जीवन दो से तीन या दो से एक की तरफ जाने को अकस्मात ही व्याकुल हो उठा था जैसे! प्रार्थना के लिए स्वतः ही हाथ उठ गए एक दम, कि जैसे, पैसे की पूर्ति या टालने की संभावना का जागृत होना भी इसी एक विकल्प में छुपा कोई रहस्य हो जैसे!

इससे पहले कि प्रार्थना आरम्भ ही हो पाती, अचानक से ये ख्याल आया कि प्रार्थना करनी ही क्या है आखिर..!!! हर हाल में सब कुछ ठीक रहने की ही तो.!! और सब ठीक ही रहा तो अंत में फिर से नर्स आएगी और कहेगी कि सब कुछ ठीक ही रहा, ऑपरेशन टल गया, मुबारक हो आप बाप बन गए!!! और चली जायेगी फिर से अंदर मुझ अकेले को फिर एक गहरे सवाल के साथ अकेला छोड़ कर कि बाप तो बन गया पर आखिर लड़की का या लड़के का..!!!

क्योंकि अब तक कुछ प्रश्न घर कर गए थे मन में कि आखिर लड़का हुआ तो क्या वो अपनी माँ के जीवन का कुछ उद्धार कर पायेगा, क्योंकि लड़का तो मैं भी था और आज तक अपनी माँ के सपनों को पूरा नहीं कर पाया था कभी!!! और अगर लड़की हुई तो क्या ये कहानी फिर से अपने अंत की तलाश लिए इस पूरे खेल को मेरी ही बेटी के जीवन में दोहराने को अठखेलियाँ करने लगेगी.!!! दोनों ही सूरतों में दूसरे छोर पर एक औरत नज़र आती है जिसे जन्म दर जन्म आज भी इन प्रश्नों के उत्तर की तलाश खाये जा रही है! शायद इसी लिए एक लड़की को जन्म से पहले मार डालने या जन्म लेते ही मार डालने की प्रथा चलन में आई होगी!

ज़रूर वो लोग ये नारी के मन की व्यथा समझ पाने में सक्षम रहे होंगे कभी! फिर समाज ने आगे बढ़ते हुए सुप्तावस्थावश इस कृत्य को नाजायज़ ठहरा दिया होगा कभी!!!

और क्या ही ज़रूरी है कि ईश्वर मेरी प्रार्थना सुन ही ले अभी.!! न सुनी तो भी तो फिर से वही स्थिति की दूसरे छोर पर नारी ही परीक्षार्थ बैठी है अपने प्रश्नों के उत्तर को वहीं!

आहहहहह...!!!! इस बार मेरे मुँह से निकलती है और माँ आश्चरवश मुझे हिला देती हैं! कि दुख की घड़ी टल गई,,, अब काहे चिल्लता है,,, मुबारक हो,,, ऑपरेशन टल गया!!! तूँ बाप बन गया!!! साक्षात लक्ष्मी अवतरित हुई हैं तेरे यहां!!

बहुत सारी ख़ुशि और उत्तसुक्तावश अपने गालों को अश्रुधारा से गिला पाता हूँ अचानक! समझ नहीं पा रहा कि क्या बोलूं!!! कुछ भी पूछने या कहने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा हूँ!!! क्योंकि फिर एक जीवन शुरू हुआ है उसी एक चीख, उसी एक आहहहहहह के साथ!

मुझे छब्बीस साल पुरानी इस घटना में उस आहहहहह के जवाब की तलाश आज भी है और ये प्रकर्ति आज भी मेरे सामने मेरी बेटी की बारात में स्वागत द्वार पर आए दूल्हे के रूप में मेरे समक्ष निरुत्तर सी खड़ी दिखाई पड़ रही है अभी....

क्या जीवनपर्यान्त मैं इसका उत्तर ढूंढ़ पाऊंगा कभी...

#आहहहहह.............

तो आखिर कौन है इस आहहहहह का असली भागीदार.!! नर या नारी.!!!    #आहहहहह.............

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