अधूरी प्रेम गाथा
दिखा तो चेहरा भी न था ठीक से और वो दूसरे डिब्बे की और बहुत जल्दी में आगे निकल गया! मन विचलित ही रहा उस क्षण भर की मुलाकात के बाद! जाने क्या रिश्ता सा बन गया था उस पल भर में ही उस एक अनजान से! बहुत देर खुद से लड़ने और प्रश्न पूछने के बाद मन ने उत्तर दिया कि शायद आत्मा ही प्रेम को जानती है, फिर कहाँ ज़रूरत रह जाती है किसी भी पहचान की! पर दुविधा ये की अब वो मिलेंगे कैसे! फिर मन को समझाते हुए मन ही उत्तर देता है कि कुछ #प्रेम_गाथा_अधूरी_ही_सत्य_का_दर्पण_होती_है, बस प्रेम हृदय की अनन्त गहराइयों से उपजा हो कहीं! प्रेम पूर्ण होता है मन से, न कि तन से! कोई मिले या न मिले प्रेम तो बस निरन्तर निष्काम अपना काम करता ही रहता है, बस सच्चाई साथ लिए! #प्रेम_त्याग_की_विषय_वस्तु_है_व_प्राप्ति_शून्य_से_ही_केवल_फलीभूत_होना_सम्भव_है_केवल_इसका!!! कहीं पढा था ऐसा तो अचानक से ये भी याद आ गया! पर स्थूल तन कहाँ मन की ये बात आसानी से मान लेने वाला होता है कभी! सुना है प्रेम में पड़े मन को तन का नियंत्रण भी हासिल हो ही जाता है! भाव बदले नहीं कि तन पर स्प्ष्ट प्रहार शुरू! आंखें खोई खोई सी, देखती होगी आपको